खजूरिया ब्राह्मणों का इतिहास

ऋषि वशिष्ठ के पुत्र ऋषि व्याघ्र पाद और व्याघ्र पाद जी के पुत्र महाऋषि उपमन्यु जी जिन्होंने भगवान शिव आदिनाथ महादेव जी का कठिन तप कर भगवान को प्रसन्न किया और वरदान रूप में मनोवांछित फल प्राप्त किए भगवान शिव उनकी तपस्या से प्रसन्न हो उन्हें महादेवी सहित दर्शन देकर  अनेक प्रकार की संपदा व कुल की रक्षा का वरदान दिया | उन्हीं महाऋषि उपमन्यु जी के पुत्र सिंधु प्रद हुए हैं जिन्होंने मानसरोवर से निकलने वाली जलधारा (नदी) सिन-का-बाब के किनारे सिंध राज्य की स्थापना की थी और सिंधु प्रद के नाम से सिन-का-बाब जलधारा को सिंधु नदी के नाम से जाना गया तथा कुछ समय बाद राजा शिवि के पुत्र वृषद्रभ को सिंध राज्य दान कर दिया था | सिंधु प्रद के बाद भी उपमन्यु वंश में अनेक महान तपस्वी हुए हैं |

सन 1179-1186 के बीच में इस्लामिक कट्टरपंथी आक्रांताओ ने भारत पर क्रोदृष्टि  डाली और कंधार आदि क्षेत्रों में अपना अधिकार कर लिया एक समय आया जब उन्होंने सिंध - पंजाब पर भी आक्रमण किया और राज्य के कुछ गद्दारों की वजह से इस्लामिक आक्रांताओ ने सिंध -पंजाब पर अधिकार हासिल कर इसे इस्लामिक क्षेत्र में तब्दील कर दिया और निर्दोष ब्राह्मणों को जो दया के प्रतिमूर्ति थे  उनके परिवारों को निहत्थे और लाचार स्थिति में कत्ल करवा दिया था |

इन्हीं ब्राह्मण परिवारों में से एक धर्मराज खजुरिया जी थे जो इस्लामिक आक्रांताओ के कारण सियालकोट छोड़कर शकरगढ़ के जंगलों में आकर  बनवासी का रूप धारण कर जीवन व्यतीत कर रहे थे जिनके कोई भी संतान नहीं थी उन्हें उसी जंगल में एक दिन श्री बनखंडीनाथ महादेव जी के दर्शन हुए  | धर्मराज खजूरिया जी पत्नी सहित प्रसन्न हो श्री बनखंडीनाथ महादेव जी पूजन किया जिससे प्रसन्न हो श्री बनखंडीनाथ महादेव जी ने उन्हें दो पुत्रों का वरदान दिया और कुछ समय के बाद श्री बनखंडीनाथ महादेव जी वरदान से दीपावली के पश्चात कार्तिक पूर्णिमा को सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उनके घर दो पुत्रों का जन्म हुआ |

जिस कारन धर्मराज खजूरिया जी अत्यंत प्रसन्न थे |  उन्होंने पत्नी सहित सवा महीने तक भूमि में आसन लगा श्री बनखंडीनाथ महादेव जी के नाम की धूनी लगा तप किया जिससे श्री बनखंडी नाथ महादेव जी के उन्हें पुनः दर्शन हुए धर्मराज खजूरिया जी ने हाथ जोड़कर प्रार्थना की हे मेरे कुल को उत्पन्न करने वाले कुलदेवता श्री बनखंडीनाथ महादेव जी आप मेरे इन दोनों पुत्रों का नामकर्ण कर इन्हें अपना आशीर्वाद दें |

कुल देवता श्री बनखंडीनाथ महादेव जी ने एक का नाम काया और दूसरे का नाम गवाल रखा और कहा  इस जंगल में तुम्हारे दोनों पुत्रों के नाम से दो विशाल नगरों की स्थापना होगी |

धर्मराज खजूरिया जी कुल देवता श्री बनखंडी नाथ महादेव जी से वरदान पाकर अत्यंत प्रसन्न थे उन्होंने खिचड़ी और रोट का भोग लगाकर के कुलदेवता जी की पूजा की इसके बाद कुल देवता श्री बनखंडी नाथ महादेव जी अंतर्ध्यान हो गए | कुलदेवता श्री बनखंडीनाथ महादेव जी सागर के सबसे छोटे पुत्र थे और भगवान शिव के 11 रुद्र रूपों में तीसरे रूद्र अवतार थे इनकी सबसे बड़ी बहन महालक्ष्मी थी जिनका सागर मंथन के समय प्रदुर्भाव हुआ था जो श्री हरि विष्णु जी की अर्धांगिनी है और इनके बड़े भाई जालंधर आदि थे, कुलदेव श्री बनखंडी नाथ महादेव भगवान शिव के शिष्य थे और उनके गुरु भाइयों में महर्षि उपमन्यु  श्री परशुराम दधीचि आदि सम्मिलित है  कुलदेव श्री बनखंडीनाथ महादेव जी जल तत्व से प्रगट होने के कारण सभी सांसारिक बाधाओं से मुक्त थे ज्यादातर वायु में ही विचरण करते थे |

एक बार कुल देवता श्री बनखंडी नाथ महादेव वायु में विचरण करते हुए पंजाब गुरदासपुर जिले के झरोली ग्राम पहुंचे जहां उन्हें ब्रह्म मुहूर्त हो गया था जिस कारण कुलदेवता श्री बनखंडी नाथ महादेव जी ने वहां के सुंदर खेतों में आसन लगा समाधिस्थ हो गए झारोली गांव के किसानों ने जब अपने खेतों में एक सुंदर बाल योगी संत को देखा तो सभी उनके पास आकर उनके बारे में पूछने लगे लेकिन कुलदेवता जी के समाधि में होने के कारण उन्हें कोई जवाब नहीं मिला | तब वहां मौजूद एक किसान ने उन किसानों से कहा जिसके खेत पर बालयोगी जी बैठे हुए थे कि तुम्हारे खेत में बाबाजी कुटिया बनाएंगे जिससे किसान मन ही मन लालच में आ घबराकर अपने मित्रों को बुला कुलदेवता जी को अपने खेत से उठा दूसरे के खेत में बिठा दिया और इस प्रकार से सभी किसान उन्हें उसके खेत में बिठा जाते थे |

जिस वजह से 1 दिन जब वह किसान अपने खेतों में गन्ना बीजने के लिए आया तो कुल देवता जी को अपने खेतों में देख गुस्से से आगबबूला हो गया और उसने उन पर हल चला दिया जिस कारण हल का फाला कुलदेवता जी की पीठ में जा लगा और उनकी समाधि भंग हो गई तब कुलदेवता जी ने उन्हें श्राप दे दिया कि जिस जगह जमीन के लालच बस हमें एक आसन की जगह नहीं दी है यह भूमि आपके किसी काम नहीं आएगी और आपके वंश (परिवार) की हर चौथी पीढ़ी में आपके गांव की कुछ भूमि बेगाना आकर संभालेगा | इतना श्राप दे कुल देवता जी अंतर्ध्यान हो गए उसी रात शकरगढ़ काया गवाल का जंगल एक ही रात में झारोली गांव में आ गया रास्ते में जहां कहीं किसी ने देखा कुछ हिस्से उन स्थानों में भी रुक गए जो झटपटबनी के नाम से प्रसिद्ध हुए |

झारोली गांव के इस जंगल में कुल देवता श्री बनखंडीनाथ महादेव जी कुलदेवी महादेवी धर्मराज खजूरिया जी की प्राचीन समाधि व मंदिर स्थित है और काया गवाल के द्वारा खजूरीयो का काफी ज्यादा विस्तार हुआ जिसके बाद कुछ पिंडी मनहांसा और शाहपुर जम्मू अन्य 21 स्थानों में जाकर बस गए जिनका उल्लेख पीढ़ी दर पीढ़ी कुलदेवता जी के मंदिर से प्राप्त हो जाता है

सन 1947 में जब भारत का हिंदुस्तान और पाकिस्तान के रूप में बंटवारा हुआ तब काया और गवाल  के खजूरिया ब्राम्हण गुरदासपुर क्षेत्र के तालपुरपंडोरी गांव में काया गांव के और रसूलपुर गांव में ग्वाल गांव के  खजुरिया ब्राह्मण परिवार आकर बसे इसी के पास झारोली गांव में काया ग्वाल का जंगल जो एक रात में बाबा बनखंडीनाथ महादेव उड़ा  कर के लाए थे वह स्थित है और

इसकी कोई भी क्षेत्रवासी लकड़ी का उपयोग नहीं कर पाता है इस जंगल में बनखंडीनाथ महादेव जी का एक सुंदर व भव्य मंदिर है और इस जंगल की लकड़ी का केवल और केवल बाबा बनखंडीनाथ महादेव जी के धूने लंगर भंडारे व मृत शरीर के दाह संस्कार में ही होता है और किसी चीज में उपयोग नहीं होता है और जो करने की कोशिश करता है उसके साथ कोई ना कोई दुर्घटना या चमत्कार हो जाता है

दीपावली के बाद आने वाली कार्तिक पूर्णिमा को खजूरिया ब्राह्मण समाज श्री बनखंडीनाथ महादेव जी का खिचड़ी भंडारा करते है व जून महीने की संक्रांति जिसे धर्मदेहाड़ा भी कहते हैं उस दिन लाखों की संख्या में लोग इकट्ठे हो छप्पन भोग का भंडारा करते हैं | पूर्णिमा वाले भंडारे को काया ग्वाल में कार्तिक पूर्णिमा सन 1374 में धर्मराज खजुरिया द्वारा शूरू किया गया था जो आज भी बनखंडीनाथ धाम मंदिर में होता है |

2022 में खजूरीओं की 27 वीं पीढ़ी चल रही है जिसमें लगभग 2300 परिवार है जो अलग-अलग क्षेत्रों में निवास करते हैं |  जिन्हे हम एक समूह में जोडने का प्रयास कर रहे हैं |

जय बनखंडी नाथ महादेव जय महाऋषि उपमन्यु जय खजुरिया ब्राह्मण समाज  जय  श्री परशुराम ||