खजूरिया ब्राह्मणों का इतिहास
ऋषि वशिष्ठ के पुत्र ऋषि व्याघ्र पाद और व्याघ्र पाद जी के पुत्र महाऋषि उपमन्यु जी जिन्होंने भगवान शिव आदिनाथ महादेव जी का कठिन तप कर भगवान को प्रसन्न किया और वरदान रूप में मनोवांछित फल प्राप्त किए भगवान शिव उनकी तपस्या से प्रसन्न हो उन्हें महादेवी सहित दर्शन देकर अनेक प्रकार की संपदा व कुल की रक्षा का वरदान दिया | उन्हीं महाऋषि उपमन्यु जी के पुत्र सिंधु प्रद हुए हैं जिन्होंने मानसरोवर से निकलने वाली जलधारा (नदी) सिन-का-बाब के किनारे सिंध राज्य की स्थापना की थी और सिंधु प्रद के नाम से सिन-का-बाब जलधारा को सिंधु नदी के नाम से जाना गया तथा कुछ समय बाद राजा शिवि के पुत्र वृषद्रभ को सिंध राज्य दान कर दिया था | सिंधु प्रद के बाद भी उपमन्यु वंश में अनेक महान तपस्वी हुए हैं |
सन 1371 में मुगलों ने भारत पर क्रोदृष्टि डाली और अफगान ( कंधार आदि ) क्षेत्रों में अपना अधिकार कर लिया एक समय आया जब उन्होंने सिंध पर भी आक्रमण किया और राज्य के कुछ गद्दारों की वजह से मुगलों ने सिंध पर अधिकार हासिल कर को इस्लामिक क्षेत्र में तब्दील कर दिया और निर्दोष ब्राह्मणों को जो दया के प्रतिमूर्ति थे उनके परिवारों को निहत्थे और लाचार स्थिति में कत्ल करवा दिया था |
इन्हीं ब्राह्मण परिवारों में से एक धर्मराज खजुरिया जी थे जो मुगलों के आतंक के कारण सियालकोट छोड़कर शकरगढ़ के जंगलों में आकर बनवासी का रूप धारण कर जीवन व्यतीत कर रहे थे जिनके कोई भी संतान नहीं थी उन्हें उसी जंगल में एक दिन श्री बनखंडीनाथ महादेव जी के दर्शन हुए | धर्मराज खजूरिया जी पत्नी सहित प्रसन्न हो श्री बनखंडीनाथ महादेव जी पूजन किया जिससे प्रसन्न हो श्री बनखंडीनाथ महादेव जी ने उन्हें दो पुत्रों का वरदान दिया और कुछ समय के बाद श्री बनखंडीनाथ महादेव जी वरदान से दीपावली के पश्चात कार्तिक पूर्णिमा को सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उनके घर दो पुत्रों का जन्म हुआ |
जिस कारन धर्मराज खजूरिया जी अत्यंत प्रसन्न थे | उन्होंने पत्नी सहित सवा महीने तक भूमि में आसन लगा श्री बनखंडीनाथ महादेव जी के नाम की धूनी लगा तप किया जिससे श्री बनखंडी नाथ महादेव जी के उन्हें पुनः दर्शन हुए धर्मराज खजूरिया जी ने हाथ जोड़कर प्रार्थना की हे मेरे कुल को उत्पन्न करने वाले कुलदेवता श्री बनखंडीनाथ महादेव जी आप मेरे इन दोनों पुत्रों का नामकर्ण कर इन्हें अपना आशीर्वाद दें |
कुल देवता श्री बनखंडीनाथ महादेव जी ने एक का नाम काया और दूसरे का नाम गवाल रखा और कहा इस जंगल में तुम्हारे दोनों पुत्रों के नाम से दो विशाल नगरों की स्थापना होगी |
धर्मराज खजूरिया जी कुल देवता श्री बनखंडी नाथ महादेव जी से वरदान पाकर अत्यंत प्रसन्न थे उन्होंने खिचड़ी और रोट का भोग लगाकर के कुलदेवता जी की पूजा की इसके बाद कुल देवता श्री बनखंडी नाथ महादेव जी अंतर्ध्यान हो गए | कुलदेवता श्री बनखंडीनाथ महादेव जी सागर के सबसे छोटे पुत्र थे और भगवान शिव के 11 रुद्र रूपों में तीसरे रूद्र अवतार थे इनकी सबसे बड़ी बहन महालक्ष्मी थी जिनका सागर मंथन के समय प्रदुर्भाव हुआ था जो श्री हरि विष्णु जी की अर्धांगिनी है और इनके बड़े भाई जालंधर आदि थे, कुलदेव श्री बनखंडी नाथ महादेव भगवान शिव के शिष्य थे और उनके गुरु भाइयों में महर्षि उपमन्यु श्री परशुराम दधीचि आदि सम्मिलित है कुलदेव श्री बनखंडीनाथ महादेव जी जल तत्व से प्रगट होने के कारण सभी सांसारिक बाधाओं से मुक्त थे ज्यादातर वायु में ही विचरण करते थे |
खजूरिया के कुलदेव का इतिहास
एक बार कुल देवता श्री बनखंडी नाथ महादेव वायु में विचरण करते हुए पंजाब गुरदासपुर जिले के झरोली ग्राम पहुंचे जहां उन्हें ब्रह्म मुहूर्त हो गया था जिस कारण कुलदेवता श्री बनखंडी नाथ महादेव जी ने वहां के सुंदर खेतों में आसन लगा समाधिस्थ हो गए झारोली गांव के किसानों ने जब अपने खेतों में एक सुंदर बाल योगी संत को देखा तो सभी उनके पास आकर उनके बारे में पूछने लगे लेकिन कुलदेवता जी के समाधि में होने के कारण उन्हें कोई जवाब नहीं मिला | तब वहां मौजूद एक किसान ने उन किसानों से कहा जिसके खेत पर बालयोगी जी बैठे हुए थे कि तुम्हारे खेत में बाबाजी कुटिया बनाएंगे जिससे किसान मन ही मन लालच में आ घबराकर अपने मित्रों को बुला कुलदेवता जी को अपने खेत से उठा दूसरे के खेत में बिठा दिया और इस प्रकार से सभी किसान उन्हें उसके खेत में बिठा जाते थे |
जिस वजह से 1 दिन जब वह किसान अपने खेतों में गन्ना बीजने के लिए आया तो कुल देवता जी को अपने खेतों में देख गुस्से से आगबबूला हो गया और उसने उन पर हल चला दिया जिस कारण हल का फाला कुलदेवता जी की पीठ में जा लगा और उनकी समाधि भंग हो गई तब कुलदेवता जी ने उन्हें श्राप दे दिया कि जिस जगह जमीन के लालच बस हमें एक आसन की जगह नहीं दी है यह भूमि आपके किसी काम नहीं आएगी और आपके वंश (परिवार) की हर चौथी पीढ़ी में आपके गांव की कुछ भूमि बेगाना आकर संभालेगा | इतना श्राप दे कुल देवता जी अंतर्ध्यान हो गए उसी रात शकरगढ़ काया गवाल का जंगल एक ही रात में झारोली गांव में आ गया रास्ते में जहां कहीं किसी ने देखा कुछ हिस्से उन स्थानों में भी रुक गए जो झटपटबनी के नाम से प्रसिद्ध हुए |
झारोली गांव के इस जंगल में कुल देवता श्री बनखंडीनाथ महादेव जी कुलदेवी महादेवी धर्मराज खजूरिया जी की प्राचीन समाधि व मंदिर स्थित है और काया गवाल के द्वारा खजूरीयो का काफी ज्यादा विस्तार हुआ जिसके बाद कुछ पिंडी मनहांसा और शाहपुर जम्मू अन्य 21 स्थानों में जाकर बस गए जिनका उल्लेख पीढ़ी दर पीढ़ी कुलदेवता जी के मंदिर से प्राप्त हो जाता है
सन 1947 में जब भारत का हिंदुस्तान और पाकिस्तान के रूप में बंटवारा हुआ तब काया और गवाल के खजूरिया ब्राम्हण गुरदासपुर क्षेत्र के तालपुरपंडोरी गांव में काया गांव के और रसूलपुर गांव में ग्वाल गांव के खजुरिया ब्राह्मण परिवार आकर बसे इसी के पास झारोली गांव में काया ग्वाल का जंगल जो एक रात में बाबा बनखंडीनाथ महादेव उड़ा कर के लाए थे वह स्थित है और
इसकी कोई भी क्षेत्रवासी लकड़ी का उपयोग नहीं कर पाता है इस जंगल में बनखंडीनाथ महादेव जी का एक सुंदर व भव्य मंदिर है और इस जंगल की लकड़ी का केवल और केवल बाबा बनखंडीनाथ महादेव जी के धूने लंगर भंडारे व मृत शरीर के दाह संस्कार में ही होता है और किसी चीज में उपयोग नहीं होता है और जो करने की कोशिश करता है उसके साथ कोई ना कोई दुर्घटना या चमत्कार हो जाता है
दीपावली के बाद आने वाली कार्तिक पूर्णिमा को खजूरिया ब्राह्मण समाज श्री बनखंडीनाथ महादेव जी का खिचड़ी भंडारा करते है व जून महीने की संक्रांति जिसे धर्मदेहाड़ा भी कहते हैं उस दिन लाखों की संख्या में लोग इकट्ठे हो छप्पन भोग का भंडारा करते हैं | पूर्णिमा वाले भंडारे को काया ग्वाल में 700 साल पहले धर्मराज खजुरिया द्वारा शूरू किया गया था जो आज भी बनखंडीनाथ धाम मंदिर में होता है |
पावन धाम : चिड़ी की पूर्णिमा
15 जून (June) चिड़ी की पूर्णिमा
श्री सिद्ध बाबा बनखंडी नाथ जी की पावन धाम ग्राम बरौली ब्लॉक दीनानगर जिला गुरदासपुर में लगाई जाती है |
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#खजूरिया #ब्राह्मण समाज का #प्राचीन #इतिहास इस इतिहास के सभी साक्ष्य मौजूद हैं..
((खजुरिया होकर भी अगर आपको अपने इतिहास का ज्ञान नहीं है तो यह आपका सबसे बड़ा दुर्भाग्य है ))
(ॐ)... महाऋषि वशिष्ठ के पुत्र ऋषि व्याघ्र पाद और व्याघ्र पाद जी के पुत्र महाऋषि उपमन्यु जी जिन्होंने भगवान शिव आदिनाथ महादेव जी का कठिन तप कर भगवान को प्रसन्न किया और वरदान रूप में मनोवांछित फल प्राप्त किए भगवान शिव उनकी तपस्या से प्रसन्न हो उन्हें महादेवी सहित दर्शन देकर अनेक प्रकार की संपदा व कुल की रक्षा का वरदान दिया | उन्हीं महाऋषि उपमन्यु जी के पुत्र सिंधु प्रद हुए हैं जिन्होंने मानसरोवर से निकलने वाली जलधारा (नदी) सिन-का-बाब के किनारे सिंध राज्य की स्थापना की थी और सिंधु प्रद के नाम से सिन-का-बाब जलधारा को सिंधु नदी के नाम से जाना गया तथा कुछ समय बाद राजा शिवि के पुत्र वृषद्रभ को सिंध राज्य दान कर दिया था | सिंधु प्रद के बाद भी उपमन्यु वंश में अनेक महान तपस्वी हुए हैं |
सन 1179-1186 के बीच में इस्लामिक कट्टरपंथी आक्रांताओ ने भारत पर क्रोदृष्टि डाली और कंधार आदि क्षेत्रों में अपना अधिकार कर लिया एक समय आया जब उन्होंने सिंध - पंजाब पर भी आक्रमण किया और राज्य के कुछ गद्दारों की वजह से इस्लामिक आक्रांताओ ने सिंध -पंजाब पर अधिकार हासिल कर इसे इस्लामिक क्षेत्र में तब्दील कर दिया और निर्दोष ब्राह्मणों को जो दया के प्रतिमूर्ति थे उनके परिवारों को निहत्थे और लाचार स्थिति में कत्ल करवा दिया था |
इन्हीं ब्राह्मण परिवारों में से एक धर्मराज खजुरिया जी थे जो इस्लामिक आक्रांताओ के कारण सियालकोट छोड़कर शकरगढ़ के जंगलों में आकर बनवासी का रूप धारण कर जीवन व्यतीत कर रहे थे जिनके कोई भी संतान नहीं थी उन्हें उसी जंगल में एक दिन श्री बनखंडीनाथ महादेव जी के दर्शन हुए | धर्मराज खजूरिया जी पत्नी सहित प्रसन्न हो श्री बनखंडीनाथ महादेव जी का पूजन किया जिससे प्रसन्न हो श्री बनखंडीनाथ महादेव जी ने उन्हें दो पुत्रों का वरदान दिया और कुछ समय के बाद श्री बनखंडीनाथ महादेव जी के वरदान से दीपावली के पश्चात कार्तिक पूर्णिमा को सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उनके घर दो पुत्रों का जन्म हुआ |
जिस कारन धर्मराज खजूरिया जी अत्यंत प्रसन्न थे | उन्होंने पत्नी सहित सवा महीने तक भूमि में आसन लगा श्री बनखंडीनाथ महादेव जी के नाम की धूनी लगा तप किया जिससे श्री बनखंडी नाथ महादेव जी के उन्हें पुनः दर्शन हुए धर्मराज खजूरिया जी ने हाथ जोड़कर प्रार्थना की हे मेरे कुल को उत्पन्न करने वाले कुलदेवता श्री बनखंडीनाथ महादेव जी आप मेरे इन दोनों पुत्रों का नामकर्ण कर इन्हें अपना आशीर्वाद दें |
कुल देवता श्री बनखंडीनाथ महादेव जी ने एक का नाम काया और दूसरे का नाम गवाल रखा और कहा इस जंगल में तुम्हारे दोनों पुत्रों के नाम से दो विशाल नगरों की स्थापना होगी |
धर्मराज खजूरिया जी कुल देवता श्री बनखंडी नाथ महादेव जी से वरदान पाकर अत्यंत प्रसन्न थे उन्होंने खिचड़ी और रोट का भोग लगाकर के कुलदेवता जी की पूजा की इसके बाद कुल देवता श्री बनखंडी नाथ महादेव जी अंतर्ध्यान हो गए | कुलदेवता श्री बनखंडीनाथ महादेव जी सागर के सबसे छोटे पुत्र थे और भगवान शिव के 11 रुद्र रूपों में तीसरे रूद्र अवतार थे इनकी सबसे बड़ी बहन महालक्ष्मी थी जिनका सागर मंथन के समय प्रदुर्भाव हुआ था जो श्री हरि विष्णु जी की अर्धांगिनी है और इनके बड़े भाई जालंधर आदि थे, कुलदेव श्री बनखंडी नाथ महादेव भगवान शिव के शिष्य थे और उनके गुरु भाइयों में महर्षि उपमन्यु श्री परशुराम दधीचि आदि सम्मिलित है कुलदेव श्री बनखंडीनाथ महादेव जी जल तत्व से प्रगट होने के कारण सभी सांसारिक बाधाओं से मुक्त थे ज्यादातर वायु में ही विचरण करते थे |
एक बार कुल देवता श्री बनखंडी नाथ महादेव वायु में विचरण करते हुए पंजाब गुरदासपुर जिले के झरोली ग्राम पहुंचे जहां उन्हें ब्रह्म मुहूर्त हो गया था जिस कारण कुलदेवता श्री बनखंडी नाथ महादेव जी ने वहां के सुंदर खेतों में आसन लगा समाधिस्थ हो गए झारोली गांव के किसानों ने जब अपने खेतों में एक सुंदर बाल योगी संत को देखा तो सभी उनके पास आकर उनके बारे में पूछने लगे लेकिन कुलदेवता जी के समाधि में होने के कारण उन्हें कोई जवाब नहीं मिला | तब वहां मौजूद एक किसान ने उन किसानों से कहा (जिसके खेत पर बालयोगी जी बैठे हुए थे )कि तुम्हारे खेत में बाबाजी कुटिया बनाएंगे जिससे किसान मन ही मन लालच में आ घबराकर अपने मित्रों को बुला कुलदेवता जी को अपने खेत से उठा दूसरे के खेत में बिठा दिया और इस प्रकार से सभी किसान उन्हें उसके खेत में बिठा जाते थे |
जिस वजह से 1 दिन जब वह किसान अपने खेतों में गन्ना बीजने के लिए आया तो कुल देवता जी को अपने खेतों में देख कर गुस्से से आगबबूला हो गया और उसने उन पर हल चला दिया जिस कारण हल का फाला कुलदेवता जी की पीठ में जा लगा और उनकी समाधि भंग हो गई तब कुलदेवता जी ने उन्हें श्राप दे दिया कि जिस जगह जमीन के लालच बस हमें एक आसन की जगह नहीं दी है यह भूमि आपके किसी काम नहीं आएगी और आपके वंश (परिवार) की हर चौथी पीढ़ी में आपके गांव की कुछ भूमि बेगाना (घर जंवाई) आकर संभालेगा | इतना श्राप दे कुल देवता जी अंतर्ध्यान हो गए उसी रात शकरगढ़ काया गवाल का जंगल एक ही रात में झारोली गांव में आ गया रास्ते में जहां कहीं किसी ने देखा कुछ हिस्से उन स्थानों में भी रुक गए जो झटपटबनी के नाम से प्रसिद्ध हुए |
झारोली गांव के इस जंगल में कुल देवता श्री बनखंडीनाथ महादेव जी व कुलदेवी महादेवी जी का मंदिर और धर्मराज खजूरिया व उनकी धर्मपत्नी शिलावंती खजूरिया जी की प्राचीन समाधि व मंदिर स्थित है और काया गवाल के द्वारा खजूरीयो का काफी ज्यादा विस्तार हुआ जिसके बाद कुछ पिंडी मनहांसा और शाहपुर जम्मू अन्य 21 स्थानों में जाकर बस गए जिनका उल्लेख पीढ़ी दर पीढ़ी कुलदेवता जी के मंदिर से प्राप्त हो जाता है
सन 1947 में जब भारत का हिंदुस्तान और पाकिस्तान के रूप में बंटवारा हुआ तब काया और गवाल के खजूरिया ब्राम्हण गुरदासपुर क्षेत्र आकर बस गए काया गांव के खजूरिया ब्राह्मण तालपुर पंडोरी और ग्वाल गांव के खजुरिया ब्राह्मण रसूलपुर मेंआकर बसे इसी के पास झारोली गांव में काया ग्वाल का जंगल जो एक रात में बाबा बनखंडीनाथ महादेव उड़ा कर के लाए थे वह स्थित है और
इसकी कोई भी क्षेत्रवासी लकड़ी का उपयोग नहीं कर पाते है इस जंगल में बनखंडीनाथ महादेव जी का एक सुंदर व भव्य मंदिर है और इस जंगल की लकड़ी का केवल और केवल बाबा बनखंडीनाथ महादेव जी के धूने लंगर भंडारे व मृत शरीर के दाह संस्कार में ही होता है और किसी चीज में उपयोग नहीं होता है और जो करने की कोशिश करता है उसके साथ कोई ना कोई दुर्घटना या चमत्कार हो जाता है
दीपावली के बाद आने वाली कार्तिक पूर्णिमा को खजूरिया ब्राह्मण समाज श्री बनखंडीनाथ महादेव जी का खिचड़ी भंडारा करते है व जून महीने की संक्रांति जिसे धर्मदेहाड़ा भी कहते हैं उस दिन लाखों की संख्या में लोग इकट्ठे हो छप्पन भोग का भंडारा करते हैं | पूर्णिमा वाले भंडारे को काया ग्वाल में कार्तिक पूर्णिमा सन 1374 में धर्मराज खजुरिया द्वारा शूरू किया गया था जो आज भी बनखंडीनाथ धाम मंदिर में होता है |
2023 में खजूरीओं की 28वीं पीढ़ी चल रही है जिसमें लगभग 3300 परिवार है जो अलग-अलग क्षेत्रों में निवास करते हैं | जिन्हे हम एक समूह में जोडने का प्रयास कर रहे हैं |
रिसर्च के अनुसार काया ग्वाल से ...काया के खजुरिया सर्वप्रथम ( pindi mana) और ग्वाल के खजुरिया जम्मू कश्मीर की प्राचीन राजधानी बिलावर में जम्वाल शासक राजा हरि देव के आग्रह पर 1661में उनके पुरोहित बनकर आए थे काफी समय बाद सन 1700 मैं जम्वाल राजा ध्रुव देव के समय कुछ खजुरिया बावे में भी निवास करने लगे कश्मीर के कई शासको ने अपने पुरोहित खजुरिया वंशजो को जागीरियां भी प्रदान की थी इसी वजह से पिंडी माना में रहने वाले अपने खजुरिया भाइयों के परिवारों को बुलाया था जो कि आज भी बिस्नाह शाहपुर क्षेत्र में निवास करते हैं खजुरिया वंश में अनेका अनेक महापुरुष भी हुए हैं जिन्होंने खजुरिया कुल के मान को बढ़ाया है और अपनी कुल गद्दी झरोली पंजाब में दीपावली के बाद आने वाली कार्तिक पूर्णिमा को इकट्ठे होकर विशाल समागम का आयोजन करते हैं
बावा अंबो जी कार्तिक पूर्णिमा के समय कई दिनों तक यहां निवास करते थे और और आने वाले श्रद्धालुओं के लिए भंडारे की व्यवस्था करते थे और अपने पूर्वजों की समाधियों का पुष्पों से श्रृंगार करवाते थे ....आज भी यहां पर पूर्वजों की बहुत सी प्राचीन समाधिया स्थित है जिन पर पुष्प भेंट कर जोत जगा आशीर्वाद प्राप्त करते हैं और ज्यादा जानकारी के लिए इस नंबर पर संपर्क कर सकते हैं 7982114959 यह नंबर गद्दी पर विराजमान पुजारी जी का है उनके द्वारा आप पूर्व काल में हुए अपने परिवारों व उनके स्थान की भी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं
जय बनखंडी नाथ महादेव... जय महाऋषि उपमन्यु ..जय खजुरिया ब्राह्मण समाज ..जय श्री परशुराम ||
आरती शिवजी की : ओम जय शिव ओंकारा
ओम जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा। ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे। हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे। त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
अक्षमाला वनमाला मुण्डमालाधारी। त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे। सनकादिक गरुड़ादिक भूतादिक संगे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
कर के मध्य कमण्डलु चक्र त्रिशूलधारी। सुखकारी दुखहारी जगपालनकारी॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका। मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
लक्ष्मी, सावित्री पार्वती संगा। पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा। भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला। शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी। नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे। कहत शिवानन्द स्वामी, मनवान्छित फल पावे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
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